बात ही कुछ और थी |
तुम्हारी हंसी से कली के खिलने की
बात ही कुछ और थी |
तुम्हारी याद भर से मेरे मुस्कुराने की
बात ही कुछ और थी |
किसी के लिए दुनिया से लड़ने की
बात ही कुछ और थी |
दो पल की भी दुरी न सह पाने की
बात ही कुछ और थी |
लेकिन सब भूल कर,
मुझे अंधेरों में छोड़ कर
तुम्हारे यूँ ही चले जाने की
क्या बताये कि वो रात ही कुछ और थी |
बात ही कुछ और थी |
लेकिन सब भूल कर,
मुझे अंधेरों में छोड़ कर
तुम्हारे यूँ ही चले जाने की
क्या बताये कि वो रात ही कुछ और थी |
1 comment:
inspired by jaaved akhtar's poem's in ZNMD i tried writing something in hindi for the first time in my life. inspired by you i finally published it on my blog http://adityarockin.blogspot.com/2012/01/blog-post.html
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